आंकड़े और हम

आंकड़ों की समझ जरूरी होती जा रही है. सही निर्णय लेने में, अपने पूर्वाग्रहों को समझने में. आंकड़ों का इस्तेमाल बेवकूफ़ बनाने में भी खूब होता हैं. अंग्रेजी की एक कहावत का तर्जुमा करूँ तो “झूठ के बढ़ते हुए स्तर हैं  – झूठ, सफ़ेद झूठ और आंकड़े”. मैं ‘द हिन्दू’ अखबार पढता हूँ. अखबार में सामन्य रिपोर्टिंग के अलावा आंकड़ों से भी दुनिया को समझने की की कोशिश की जा रही हैं. एक वेबसाइट है -factly.in इसकी टैग लाइन है – हम सार्वजनिक आंकड़ों को अर्थपूर्ण बनाते हैं (Making Data Meaningful).

Leave a comment